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आये कहा करि कै कहिए वृषमान लली सों लला दृग जोरत। ता दिन तें अँसुवान की धार रुकी नहीं जद्यपि लोग निहोरत। बेगि चलो रसखान बलाइ लौं क्यों अभिमानन भौंह मरोरत। ...